Why company split there shares शेयर विभाजन का एक प्रमुख कारण बाजार में लिक्विडिटी (Liquidity) बढ़ाना है। जब किसी कंपनी का शेयर विभाजित होता है, तो शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और प्रति शेयर की कीमत घट जाती है। इससे छोटे निवेशकों को उस कंपनी में निवेश करने का मौका मिलता है, क्योंकि कम कीमत के कारण वे अधिक शेयर खरीद सकते हैं। जब अधिक निवेशक कंपनी के शेयर खरीदने लगते हैं, तो बाजार में शेयरों की मांग और आपूर्ति बढ़ जाती है, जिससे शेयरों की लिक्विडिटी बढ़ती है।
अगर किसी कंपनी के शेयर की कीमत बहुत अधिक हो जाती है, तो यह नए या छोटे निवेशकों के लिए अप्राप्य हो सकता है। उच्च शेयर मूल्य अक्सर निवेशकों के लिए मानसिक बाधा उत्पन्न कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कंपनी का शेयर ₹5000 का हो, तो कई छोटे निवेशक इतने बड़े निवेश के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में कंपनी शेयर विभाजन करके शेयर की कीमत को कम करती है, जिससे नए निवेशकों को शेयर खरीदने में आसानी होती है और कंपनी का बाजार में आकर्षण बढ़ता है।
कई बार कंपनियां शेयर विभाजन इसलिए भी करती हैं ताकि मौजूदा शेयरधारकों के बीच संतुलन बना रहे। मान लीजिए, किसी कंपनी के शेयर की कीमत अत्यधिक बढ़ गई है और एक बड़ा शेयरधारक कई शेयरों पर काबिज़ हो गया है। ऐसे में छोटे निवेशकों की हिस्सेदारी घट जाती है। शेयर विभाजन से सभी निवेशकों के पास शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और एक प्रकार से बाजार में संतुलन बना रहता है।
कई निवेशक यह मानते हैं कि अगर किसी कंपनी का शेयर विभाजित हो रहा है, तो कंपनी का भविष्य उज्ज्वल है और उसका प्रदर्शन अच्छा रहेगा। शेयर विभाजन के बाद निवेशक इस उम्मीद में अधिक शेयर खरीदते हैं कि भविष्य में उनके शेयरों की कीमत बढ़ेगी। यह सकारात्मक सोच कंपनी के शेयर की मांग को बढ़ा सकती है, जिससे शेयर की कीमत भी धीरे-धीरे बढ़ सकती है।
कंपनियां अपने शेयर की कीमत को एक किफायती स्तर पर बनाए रखना चाहती हैं ताकि विभिन्न प्रकार के निवेशक, चाहे वे छोटे हों या बड़े, आसानी से निवेश कर सकें। अगर शेयर की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तो छोटे निवेशक उस शेयर में निवेश करने से कतराते हैं। शेयर विभाजन से शेयर की कीमत घट जाती है, जिससे इसे खरीदने के लिए अधिक निवेशक प्रेरित होते हैं।
यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि शेयर विभाजन से कंपनी की मार्केट कैपिटलाइजेशन (Market Capitalization) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और प्रति शेयर की कीमत घट जाती है, लेकिन कुल निवेश की राशि वही रहती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी के शेयर की कीमत ₹1000 है और 1:2 का शेयर विभाजन होता है, तो अब प्रति शेयर कीमत ₹500 हो जाएगी, लेकिन अगर आपके पास पहले 1 शेयर था, तो अब आपके पास 2 शेयर हो जाएंगे। इस प्रकार कुल मूल्य वही रहेगा।
शेयर विभाजन से कंपनी के शेयरधारकों को यह महसूस होता है कि उनके पास अब पहले से अधिक शेयर हैं। हालांकि उनका कुल निवेश नहीं बदलता, लेकिन इस विभाजन के कारण शेयरधारक अपने निवेश में वृद्धि की संभावनाओं को लेकर अधिक सकारात्मक महसूस कर सकते हैं। इस प्रकार, यह शेयरधारकों के बीच एक सकारात्मक संदेश भेजता है कि कंपनी का प्रदर्शन अच्छा है और कंपनी आगे भी विकास करेगी।
शेयर विभाजन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
शेयर विभाजन का कंपनी की वित्तीय स्थिति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं होता, क्योंकि यह केवल एक सांकेतिक प्रक्रिया होती है। लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव बाजार में कंपनी की प्रतिष्ठा और शेयरधारकों के विश्वास पर जरूर पड़ सकता है। शेयर विभाजन से कंपनी के प्रति निवेशकों की धारणा बदल सकती है, खासकर तब जब निवेशक यह मानते हैं कि कंपनी तेजी से विकास कर रही है और इसके शेयरों की कीमत भविष्य में और बढ़ सकती है।
इसके अतिरिक्त, यदि किसी कंपनी का प्रदर्शन मजबूत है और वह शेयर विभाजन करती है, तो इससे कंपनी के शेयर की मांग बढ़ने की संभावना रहती है। यह कंपनी के शेयर की कीमत को दीर्घकाल में बढ़ा सकता है, जिससे निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिल सकता है।